Monday, April 04, 2005

कभी कभी

कभी कभी मेरे दिल मे ये खयाल आता है
के जिंदगी तेरे जुल्‍फो कि नर्म छाव ने गुजर न पाती
तो शाहदाब हो भी सकती थी
यह रंजो गम की शहायी जो दिल पे छायी है
तेरी नजर की शुआऒं मे खो भी सकती थी
मगर ये हो न सका......
मगर ये हो न सका और ये आलम है
के तू नही तेरा गम, तेरी जुस्‍तजू भी नही
गुजर रही है कुछ इस तरह जिंदगी जै
सेइसे किसिके सहारे की आरझू भी नही
न कोई राह, ना मंजील, ना रोशनी का सुराग
भटक रही है अंधेरों हे जिंदगी मेरी
इन हि अंधेरो मे रह जाउंगा कभी खो कर
मै जानता हू मेरी हम नफझ
मगर युंहि
कभी कभी मेरे दिल मे खयाल आता है.........

Saturday, April 02, 2005

मायबोली

मराठीत/हिन्‍दीत लिहीण्‍याचा सहा वर्षानंतर माझा पहिला प्रयत्‍न. बघुया किती सफल होतो ते.