Friday, September 16, 2005

निशा

सुबह कि पहली किरन से ही होता है
मुझॆ निशा का इंतजार
अपनी बाहों मे समेटे मुझे
देती है नींद का उपहार

क्‍या कशीष है तुम्‍हरी आगोश मै
जो जगाए यह प्‍यारा अहसास
क्‍यों उड जाती है मेरी नींद
जो ना होति हो तुम आसपास

बस तेरे एक आहट से हि
आखों पे नशा सा छा जाता है
झुकने लगती है पलके और
दिल अंगडाइया गाता है

तेरे पहलू मे आकर
दुनिया को भुल जाता हु मै
देख तेरी नशीली आखे
सपनो मे खो जाता हु मै

रात के कुछ आखरि पलों मे
सताए तुम से जुदाइ का गम
मांगु मै हर पल यही दुआ
क्‍यों ना जाए वक्‍त यही थम

दिन का आने वाला हर पल
तुम्‍हारी याद मे कटता है
इस दुनीया से हो बेखबर
बस तुम्‍हारा इंतजार रहता है

2 Comments:

Blogger Daneshia said...

tumhe neend itni pyari kyun hai par? nikita ko bhi hai kya?

4:34 AM  
Blogger Pratik Pandey said...

हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में आपका हार्दिक स्‍वागत है। बहुत ही सुन्‍दर कविता लिखी है।

12:13 PM  

Post a Comment

<< Home