Thursday, October 12, 2006

लगे रहो...

शहर की इस दौड मे दौड के करना क्‍या है,
गर यही जीना है दोस्‍तों तो मरना क्‍या है ।

पहली बारिश मे ट्रेन छुटने का डर है,
भुल गये भीगते हुए टहलना क्‍या है ।
सिरियल के सारे किरदारोंका हाल पता है,
पर मॉ का हाल पुछने कि फुरसत कहा है ।

अब रेत पर नंगे पाव चलते क्‍यो नही,
१०८ है चैनल पर दिल बहलते क्‍यो नही ।
इंटरनेट से दुनीया से तो टच मे है,
लेकिन पड़ोस मे कौन रहता जानते तक नही ।

मोबाइल लॅंड़लाइन सब की भरमार है,
लेकिन जिगरी दोस्‍त तक पहुचे ऐसे तार कहा है ।
कब ड़ुबते हुए सुरज को देखा था याद है,
कब जाना था शाम का गुजरना क्‍या है ।

शहर की इस दौड मे दौड के करना क्‍या है,
गर यही जीना है दोस्‍तों तो मरना क्‍या है ।

Monday, November 07, 2005

एकटा

ही वाट माझी नेहमीची
पण तिनेही आज ऒऴख नाही दाखवली
मी वाट चुकलो हे कऴलेही असेल
पण तिने त्‍याची दखल नाही घेतली

या पावलांनी मला सदैव साथ दिली
माझी चुकलेलि वाट त्‍यांनाहि नाही कऴली
की मला अडखऴलेला बघुन
त्‍यांनीही माझ्‍याशी फारकत केली

या डोऴ्‍यांनी मला नेहमी आशेचा किरण दाखविला
मग नैराश्‍याच्‍या अंधाराची त्‍यांना चाहुल नाही लागली
की कदाचीत या काऴोखाच्‍या भीतीने
त्‍यांनीही पापणी मिटुन घेतली

Friday, September 16, 2005

निशा

सुबह कि पहली किरन से ही होता है
मुझॆ निशा का इंतजार
अपनी बाहों मे समेटे मुझे
देती है नींद का उपहार

क्‍या कशीष है तुम्‍हरी आगोश मै
जो जगाए यह प्‍यारा अहसास
क्‍यों उड जाती है मेरी नींद
जो ना होति हो तुम आसपास

बस तेरे एक आहट से हि
आखों पे नशा सा छा जाता है
झुकने लगती है पलके और
दिल अंगडाइया गाता है

तेरे पहलू मे आकर
दुनिया को भुल जाता हु मै
देख तेरी नशीली आखे
सपनो मे खो जाता हु मै

रात के कुछ आखरि पलों मे
सताए तुम से जुदाइ का गम
मांगु मै हर पल यही दुआ
क्‍यों ना जाए वक्‍त यही थम

दिन का आने वाला हर पल
तुम्‍हारी याद मे कटता है
इस दुनीया से हो बेखबर
बस तुम्‍हारा इंतजार रहता है

Wednesday, May 11, 2005

निकिता

एक हसिन सा ख़याल हो तुम
मुलायम रेशम का रुमाल हो तुम

खुली आखॊ से देखा के खाब हो तुम
बाग ने खिला गुलाब हो तुम

बारिश कि पहलि फ़ुहार हो तुम
मेरे दिल मे बसा प्यार हो तुम

होटो पर बसि मासुम सि मुस्कान हो तुम
दुर जमिन को चुमता आसमान हो तुम

मेरे दिल से उठती कविता हो तुम
निर्मल जल कि सरिता हो तुम

सोच मे पडा हु कौन हो तुम
मेरी प्यारी निकिता हो तुम

Monday, April 04, 2005

कभी कभी

कभी कभी मेरे दिल मे ये खयाल आता है
के जिंदगी तेरे जुल्‍फो कि नर्म छाव ने गुजर न पाती
तो शाहदाब हो भी सकती थी
यह रंजो गम की शहायी जो दिल पे छायी है
तेरी नजर की शुआऒं मे खो भी सकती थी
मगर ये हो न सका......
मगर ये हो न सका और ये आलम है
के तू नही तेरा गम, तेरी जुस्‍तजू भी नही
गुजर रही है कुछ इस तरह जिंदगी जै
सेइसे किसिके सहारे की आरझू भी नही
न कोई राह, ना मंजील, ना रोशनी का सुराग
भटक रही है अंधेरों हे जिंदगी मेरी
इन हि अंधेरो मे रह जाउंगा कभी खो कर
मै जानता हू मेरी हम नफझ
मगर युंहि
कभी कभी मेरे दिल मे खयाल आता है.........

Saturday, April 02, 2005

मायबोली

मराठीत/हिन्‍दीत लिहीण्‍याचा सहा वर्षानंतर माझा पहिला प्रयत्‍न. बघुया किती सफल होतो ते.